संघ की भी सहमति के बाद मंथन तेज
नई दिल्ली। बिहार देश का ऐसा पहला राज्य था, जहां जातिगत जनगणना कराई गई और फिर उसके आधार पर ही आरक्षण की सीमा को भी बढ़ा दिया गया। यह काम नीतीश कुमार की सरकार ने कराया था और अब वह भाजपा के साथ गठबंधन में हैं। केंद्र सरकार भी उनके सहयोग से चल रही है और राज्य में भी भाजपा और जेडीयू साथ हैं। कई बार जेडीयू की ओर से जातिगत जनगणना की मांग की जाती रही है। इसके अलावा चिराग पासवान ने भी पिछले दिनों ही डिमांड की थी। कांग्रेस, सपा, आरजेडी समेत देश के तमाम बड़े राजनीतिक दल यह मांग लगातार उठा रहे हैं।अब खबर है कि मोदी सरकार भी इस विकल्प पर विचार कर रही है।
जाति का कॉलम भी जनगणना के फॉर्म में दर्ज किया जाएगा
सरकारी सूत्रों का कहना है कि जनगणना के लिए काम शुरू हो चुका है और जल्दी ही इसकी प्रक्रिया का आधिकारिक ऐलान होगा। अभी सरकार इस बात को लेकर भी मानसिक रूप से तैयार है कि यदि जरूरी होगा तो जाति का कॉलम भी जनगणना के फॉर्म में दर्ज किया जाएगा। इस संबंध में भी जल्दी ही फैसला भी हो सकता है। कहा जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व और मोदी सरकार का बदला हुआ रुख आरएसएस के स्टैंड के चलते भी है।हाल ही में आरएसएस की केरल में हुई बैठक के बाद संगठन ने जाति जनगणना के सवाल पर सकारात्मक जवाब दिया था। आरएसएस का कहना था कि हम जाति जनगणना के खिलाफ नहीं है। यदि सामाजिक योजनाएं बनाने में इससे कुछ फायदा मिलता हो तो यह होना चाहिए। लेकिन इसके जरिए सामाजिक विद्वेष पैदा करने या अपने राजनीतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
अब सरकार भी जाति जनगणना के पक्ष!
माना जा रहा है कि इस तरह संघ के रवैये को देखने के बाद अब सरकार भी जाति जनगणना के पक्ष में जा सकती है। बता दें कि जनगणना 2021 में ही शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन कोरोना के चलते इसे टालना पड़ा था। अब संसद में महिलाओं को मिले 33 फीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए भी जनगणना के आंकड़े जरूरी हैं।